शनिवार, 25 सितंबर 2010

प्यार का वो देवता, कुछ पल का ही मेहमां हुआ,


नगम-ए-मोहब्बत सुनाना,
कब कहाँ आसान हुआ,
प्यार का वो देवता,
कुछ पल का ही मेहमां हुआ,

धज्जी - धज्जी क्यों हुए,
सपने बुने जो मैंने तुमने,
खुद उन पर शर्मिंदा क्यों?
रस्ते चुने जो मैंने तुमने,

पास रह कर भी हुए,
मीलों के क्यों ये फासले,
तुम भी जुदा हम भी जुदा,
क्यूँ कर कहो अब सांस ले,

कहाँ गये वो कसमे वादे,
जिनका दम हम भरा किये,
शायद दोनों ही भूल गये,
हम कब एक दूजे पर मरा किये,

मैं अपनी खुशियों मैं गमगीं,
तू अपने सुख से अनजान,
नदिया के किनारे सी अब,
तेरी मेरी है पहचान,

रात के चाँद को, नजर किसकी लगी है,
तू ही बता हमदम, कहाँ किस की कमी है,

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अपनी खुशियों मैं गमगीं,
    तू अपने सुख से अनजान,
    नदिया के किनारे सी अब,
    तेरी मेरी है पहचान,
    Rakesh ji bahut sundar chitran kiya hai,,,,aapka blog padhkar bahut achchha laga,,,,,Badhai

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  2. पास रह कर भी हुए,
    मीलों के क्यों ये फासले,
    तुम भी जुदा हम भी जुदा,
    क्यूँ कर कहो अब सांस ले,



    मैं अपनी खुशियों मैं गमगीं,
    तू अपने सुख से अनजान,
    नदिया के किनारे सी अब,
    तेरी मेरी है पहचान,

    rakesh ji bahut hi gahraai hai marm ko chhu li aapki kavita....dard ka pura samavesh hai........

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