मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

गजल ये मेरी भी, तो फानी नही है ...


गजल क्या वो जिसमे, तेरा जिक्र ना हो?
ना हो तेरा लडकपन, जवानी नही है........

ना हो मेरी वफायें, और तेरी जफ़ाएं,
जिसके कारण ही, ये जिंदगानी नही है.........

पड़े जो हमें, फक्त ये ही कहे वो,
हकीकत है ये कोई, कहानी नही है ........

खुद की ख़ुशी पे, जो खुद को मिटा दे,
कहीं ऐसा दीवाना, दीवानी नही है........

जो किताबों मैं दर्ज हों, अमर होंगी बेशक,
गजल ये मेरी भी, तो फानी नही है ....